असफलता मिले तो निराश नहीं होना चाहिए, आगे बढ़ते रहें

वाल्मीकि रामायण के सुंदर कांड में एक बहुत प्रेरक प्रसंग है। हनुमानजी लंका में सीता को खोज रहे हैं। रावण सहित सभी लंकावासियों के भवनों, अन्य राजकीय भवनों और लंका की गलियों, रास्तों पर सीता को खोज लेने के बाद भी मिली तो वे थोड़े हताश हो गए। हनुमान ने सीता को कभी देखा भी नहीं था लेकिन वे सीता के गुणों को जानते थे। वैसे गुण वाली कोई स्त्री उन्हें लंका में नहीं दिखाई दी। अपनी असफलता ने उनमें खीज भर दी। वे कई तरह की बातें सोचने लगे। उनके मन में विचार आया कि अगर खाली हाथ लौट जाऊंगा


रामायण में कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनसे सुखी और सफल जीवन की सीख मिलती है। अगर इनकी सीख को जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई परेशानियों से बच सकते हैं। वाल्मीकि रामायण के सुंदर कांड में एक बहुत प्रेरक प्रसंग है। हनुमानजी लंका में सीता को खोज रहे हैं। रावण सहित सभी लंकावासियों के भवनों, अन्य राजकीय भवनों और लंका की गलियों, रास्तों पर सीता को खोज लेने के बाद भी जब हनुमान को कोई सफलता नहीं मिली तो वे थोडे हताश हो गए। हनुमान ने सीता को कभी देखा भी नहीं था लेकिन वे सीता के गुणों को जानते थे। वैसे गुण वाली कोई स्त्री उन्हें लंका में नहीं दिखाई दी। अपनी असफलता ने उनमें खीज भर दी। वे कई तरह की बातें सोचने लगे। उनके मन में विचार आया कि अगर खाली हाथ लौट जाऊंगा तो वानरों के प्राण तो संकट में पड़ेंगे ही। प्रभु राम भी सीता के वियोग में प्राण त्याग देंगे, उनके साथ लक्ष्मण और भरत भी। बिना अपने स्वामियों के अयोध्यावासी भी जी नहीं पाएंगे। बहुत से प्राणों पर संकट छा जाएगा। क्यों ना एक बार फिर से खोज शुरू की जाए। ये विचार मन में आते ही हनुमान फिर ऊर्जा से भर गए। उन्होंने अब तक कि अपनी लंका यात्रा की मन ही मन समीक्षा की और फिर नई योजना के साथ खोज शुरू की। हनुमान ने सोचा अभीतक ऐसे स्थानों पर सीता को ढूंढा है जहां राक्षस निवास करते हैं। अब ऐसी जगह खोजना चाहिए जो वीरान हो या जहां आम राक्षसों का प्रवेश वर्जित हो। ये विचार आते ही उन्होंने सारे राजकीय उद्यानों और राजमहल के आसपास सीता की खोज शुरू कर दीअंत में सफलता मिली और हनुमान ने सीता को अशोक वाटिका में खोज लिया। हनुमान के एक विचार ने उनकी असफलता को सफलता में बदल दिया। अक्सर हमारे साथ भी ऐसा होता है। किसी भी काम की शुरुआत में थोडी सी असफलता हमें विचलित कर देती है। हम शुरुआती हार को ही स्थायी मानकर बैठ जाते हैं। फिर से कोशिश ना करने की आदत न सिर्फ अशांति पैदा करती है बल्कि हमारी प्रतिभा को भी खत्म करती है।