कोरोना-तैयारी और यथार्थ

कोरोना वायरस (कोविड19) आपदा संपूर्ण विश्व के लिए एक चुनौती बन कर उभरी है। इस संकट की भयावहता और इससे उत्पन्न चिंताओं को महसूस कर विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेड्रोस ने इसे वैश्विक महामारी घोषित किया। संक्रमण के घातक प्रकोप, भयावह स्थिति और सबसे निराशाजनक उसके प्रति चौंकाने वाली लोगों की अकर्मण्यता पर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि 'यदि सभी देश अपने नागरिकों की जांच, उपचार, पृथक्करण कर लोगों को जागरूक और सक्रिय करें तो वे इस वैश्विक महामारी का रुख मोड़ सकते हैं।' विश्व के कई देशों ने कोरोना से निपटने के लिए कुछ बड़े और कठोर फैसले किए हैं, जिसमें नागरिकों की भूमिका अहम रही है। भारत विकास के लिए प्रयत्नशील देश है और हमारे लिए यह संकट सामान्य बात नहीं है। इसमें कोई संशय नहीं कि बिना नागरिकों के सहयोग के इस महामारी का मुकाबला कर पाना मुश्किल है। इसलिए देश के सभी नागरिकों का यह कर्तव्य है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से जारी सभी परामर्शों और दिशा-निर्देशों का पालन करें। कोरोना से बचाव के लिए सरकार की ओर से जो कदम उठाए जा रहे हैं, उन पर अमल कर सहयोग करें। यह कोरोना से निपटने में यह जन भागीदारी काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकती है। जैसे वायरस को फैलने से रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि भीड़ वाले स्थानों पर जाने से एकदम बचा जाए। लेकिन अभी यह देखने में आ रहा है कि लोग इस तरह के संकल्प और संयम को महत्त्व नहीं दे रहे। देश में कई मामले तो ऐसे सामने आए हैं जिनमें लोगों ने जरूरी जानकारियां छिपाईं और उनकी यह लापरवाही दूसरों के लिए संकट का बड़ा कारण बन गई। कोरोना जैसी महामारी के संकट से निपटने में सामाजिक संगठनों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो सकती है। समाज के समझदार जागरूकता लाने के काम में बड़ी मदद कर सकते हैं। इस महामारी के प्रकोप से सुरक्षित रहने का एकमात्र उपाय स्वच्छता है। सामाजिक संगठनों को इसे 'व्यावहारिक परिवर्तन' के कार्यक्रमों में शामिल कर इसके बारे में नियमित रूप से जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। हालांकि भारत में स्वच्छता अभियान के लिए प्रयास कम नहीं हुए हैं, लेकिन साफ-सफाई के प्रति लोगों में आज भी सजगता का अभाव देखने को मिलता है और वह भी बड़े पैमाने पर। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी आवश्यकता पर जोर दिया है। कोरोना संक्रमण जिस तरह का भयावह रूप धारण कर गया, उसके पीछे सरकारों की असफलता तो बड़ा कारण है ही, आमजन की लापरवाही ने भी इसे बढ़ाया है। इससे बचने का उपाय चिकित्सकीय से ज्यादा सामाजिक एवं व्यावहारिक वातावरण पर निर्भर करता है। इसलिए स्वैच्छिक संगठन लोगों को इस महामारी के खौफ से निकाल सकते हैं। लोगों को पर्याप्त और सही सूचनाएं, जानकारियां दी जानी जरूरी हैं। स्वैच्छिक संगठनों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इस महामारी के प्रसार को रोकने के लिए लोगों की भागीदारी और उनको प्रेरित करने की सामर्थ्य कितनी ज्यादा है। इन संस्थाओं के द्वारा इस बीमारी से निपटने के लिए आर्थिक सहयोग प्रदान किया जाना, निर्धनों की मदद, उन्हें जागरूक करना, चिकित्सा राहत एवं सामान्य जन उपयोगिता के किसी अन्य उद्देश्य का उन्नयन किया जाना चाहिए। जब इतने व्यापक स्तर पर लोग महामारी से पीड़ित हों तो चिकित्सकीय प्रणाली पर पूर्ण निर्भरता असफल होती है। इसके लिए मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता उतनी ही महत्त्वपूर्ण हो जाती है जितनी कि चिकित्सकीय सेवा की। इस तरह के वास्तविक प्रयासों से पीड़ितों की सहायता करने के अलावा उनके बच्चों, परिवार और अन्य आश्रित लोगों की सहायता की जा सकती है जो एकाकीपन और सामाजिक भेदभाव के शिकार हो जाते हैं। महामारी से के दुश्चक्र से निकलने में बचाव कार्यक्रम भी काफी अहम हैं। जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय और न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव द्वारा बनाई गई ग्लोबल हेल्थ सिक्युरिटी (जीएचएस) रिपोर्ट में यह बताया गया कि संपूर्ण विश्व में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा मौलिक रूप से बहुत कमजोर है। कोई भी देश वैश्विक महामारी से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है और सभी देशों में यह कोरोना वायरस महामारी गंभीर चुनौती के रूप में सामने आई है। भारत के संदर्भ में देखें तो केंद्र और राज्य सरकारों को इस संक्रमण से लड़ने के लिए ठोस और कारगर उपायों के बारे में सोचने की जरूरत है। समस्या अभी यह है कि कोरोना वायरस का कोई इलाज नहीं है और इसकी दवा या टीका कब तक तैयार होगा, यह भी कोई नहीं जानता। ऐसे में बचाव के उपाय ही कारगर हो सकते हैं। महामारी के फैलाव को रोकने और इस पर काबू पाने के लिए लोगों के व्यवहार में परिवर्तन, उनको जागरूक तथा शिक्षित करने की आवश्यक है। जनभागीदारी और जनसर्थन से कई प्रभावी कदम भी केंद्र और राज्य सरकारें उठा रही हैं। इसके प्रमुख उपाय के रूप में सामाजिक दूरी का उपाय बहुत कारगर है।